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रंगोली क्यों बनाई जाती है ?
दोस्तों आज हम बात कर रहे है रंगोली की |
रंगोली का क्या मतलब हुआ- रंगों से बनी हुए कोई आकृति या रंगों से बनी हुई रंग+ओली बन गयी रंगोली .
कहा जाता है रंगोली का इतिहास बहुत पुराना है |उसे आज के समय से नहीं बल्कि हडप्पा मोहन जोदारो के समय से ही बनाया जाता आ रहा है | समय बदला और रंगोली का रूप भी,
आज हमारे देश भारत के अलग अलग राज्यों में विभिन तरीकों से रंगोलियाँ बनायी जाती है |
उसको बनाये जाने की भावना तो एक ही है लेकिन तरीका अलग अलग है, और हाँ उसके नाम भी अलग है |
कोई उसे अल्पना , तो कोई कोलम, तो कोई चौक पूरन भी कहता हैं | चौक आटे से पूरा जाता है |
चौक बनाने को चौक पूरना कहा जाता है ,इसे आटे से बनाया जाता है ,
बंगाल में रंगोली को अल्पना कहते है इसे चावल के आटे से बनाया जाता है |
मुझे लगता है रंगोली में खाद्य पदार्थ जैसे – गेहूँ का आटा, या चावल का आटा इनका इस्तेमाल करने का कारण शायद ये भी होगा की अनजाने में ही सही पर हम छोटे छोटे जीव जन्तुओ को खाना भी दे देते है |
क्योंकि ये जो चावल और गेहूँ का आटा है उसे चीटियाँ या छोटे कीड़े मकोड़े खा सकते है |
आज रंगोली के रूप में बहुत बदलाव आया है लेकिन सालो से चली आ रही पत्थर के पावडर से बनी हुई रंग बिरंगी रंगोली हम सब के मन को भाती है.
रंगोली का इतिहास
मोहन जोदारो और हड़प्पा सभ्यता के अवशेषों मे अल्पना से मेल खाते हुए चित्र दिखते है |
रंगोली को अल्पना भी कहा जाता है | ये शब्द संस्कृत में मिलता है| |
जिसे ओलेंपन कहा जाता है | ओलेंपन का मतलब है “लेप करना “|
पुराने समय में ऐसा माना जाता था कि जिस घर और शहर में सुंदर चित्र, रंग रंगोली बनीं हो वहाँ सदैव खुशहाली रहती है |
आज भी इस बात को गावों में पालन किया जाता है जहाँ घर के बाहर रंगोली बनायीं जाती है |
रंगोली का महत्व
रंगोली हमारी हिन्दी सभ्यता का अभिन्न अंग है चाहे कोई भी पूजा हो या कोई भी शुभ कार्य रंगोली बड़े प्यार से बनायीं जाती है |
सब जानते है कि रंगोली बनाने के अगले दिन वह धुल जाएगी या खराब हो जाएगी फिर भी उसको बड़े मन से बनाया जाता है |
घर में पूजा हो तो यज्ञ की वेदी के चारो और मांडने बनाये जाते है |
रंगोली में अलग- अलग प्रकार की आकृतियाँ बनायीं जाती है जैसे कमल, कलश , भगवान के प्रतीक |
जमीन को गोबर से लीप कर उस पर रंगोली बनायीं जाती है | हर तीज त्यौहार या हो घर पर कोई भी कार्य उस पर रंगोली बनायीं ही जाती है |
मुख्य रूप से रंगोली दिपावली के समय में हर घर के बाहर आपको सजी हुई मिल जाएगी बच्चे हो या बड़े सब आपको अपना घर–आँगन सजाते हुए मिल ही जायेंगे |
आज कल विभिन्तन तरह की रंगोली बनायीं जाती है जैसे पत्थर को पीस कर रंग बिरंगी रंगोली या रंग बिरंगे फूलो से बनो हुई रंगोली |
आज कल तो रंगोली में भी प्रयोग किया जा रहा है, जिसमे पानी के अंदर भी रंगोली बनायीं जाती है |
नागपुर की रहने वाली वंदना जोशी ने २००४ में पानी के अंदर पहली बार रंगोली बना कर अपना एक अलग ही मुकाम पाया और अपना नाम “गिनिस बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड “ में अंकित कराया |
रंगोली के विभिन प्रकार :-
- अल्पना
- अरिपन
- अइपन
- कोलम
- मुगू
- मांडना
- चौक पूरन
अल्पना रंगोली :-
अल्पना अलग रंगों से बनायीं जाने वाली एक कला है जिसे रंगोली भी कहा जाता है |
इसे विशेष रूप से बंगाल और दक्षिण भारत में बनायी जाती है|
इसे शादी या किसी शुभ प्रसंग में सूखे प्राकृतिक रंगों से बनाया जाता है अल्पना में मुख्य रूप से ज्यामितिक आकार होते है , इन्ही के द्वारा देवी देवताओ की इसमें आकृतियाँ बनायी जाती है |
इसे बनाने के लिए चावल का घोल, सुखी हुई पत्तियों का घोल और चारकोल पाउडर का इस्तेमाल किया जाता है |
अरिपन रंगोली :-
यह बिहार में बनायीं जाने वाली कलाकृति है इसे आँगन की दिवारो पर बनाया जाता है |
इसे चावल से भी बनाया जाता है ,चावल को घंटो भिगोकर रखा जाता है फिर उसे सिल बट्टे में पीसा जाता है इसका गाढ़ा घोल बनाया जाता है इसे पिठोरा बोला जाता है |
इसे हम ऊँगली का प्रयोग करके आकृति बना सकते है |
कोलम रंगोली:-
यह दक्षिण भारत में तमिलनाडू और केरल में बनायीं जाने वाली रंगोली है |
इसमें भी चावल के आटे का प्रयोग होता है एवं फूलो का भी इस्तेमाल किया जाता है |
इसे पुकोलम भी कहा जाता है इसे केरल में मुख्य त्यौहार ओणम के समय बनाया जाता है .
इसकी भी एक बड़ी रोचक पद्धती है ओणम का पर्व ७ दिनों तक चलता है , त्यौहार के पहले दिन फूलो से छोटी आकृति बनायीं जाती है अगले ७ दिनों में और भी लोगो के सहयोग से इसे वृहत रूप दे दिया जाता है |
इनमे ऐसे फूलो का इस्तेमाल होता जो जल्दी मुरझाते नहीं है जैसे गेंदा , गुलाब,चमेली आदि | इनकी पत्तियां भी जल्दी नहीं सूखती जिससे ये रंगोली ज्यादा दिनों तक टिक पाती है |
मुगू रंगोली :-
भारत के अन्य राज्यों की तरह ही आंध्र प्रदेश में भी सबेरे सबेरे घरो के बाहर चावल के आटे से कलाकृति बनायीं जाती है |
इसमें चावल के आटे के इस्तेमाल के पीछे कारण ये है कि चावल का आटा चिड़िया, चीटियां या छोटे छोटे जीव इसे खा सके और भगवान ने जो हमें दिया है हम भी उसे दूसरों को दे और भगवन को धन्यवाद् कर सके|
इस कलाकृति को जमीन पर गाय के गोबर से लीप कर उस पर बनाया जाता है, कहा जाता है ना कि गोबर हमें कई बीमारियों से बचाता भी है|
लेकिन आज के समय में इसमें थोडा बदलाव किया गया है अब केल्शियम या चौक पावडर से बनाया जाता है |
ज़मीन का रंग गोबर के कारण गहरा हो जाता है और सफ़ेद चूर्ण से बनायीं जाने वाली आकृति एकदम सुंदर रूप से उभर कर आती है |
मांडना रंगोली :-
मांडना मालवा ,राजस्थान , निवाड़ की कला कृति है , इसे भी ज़मीन पर और दिवार पर बनाया जाता है .
इसमें ज्यामितिक आकृतियां जेसे त्रिकोण , चतुर्भुज ,शतरंज के पट का आधार ,आदि टेढी रेखाए , फूल पत्तियों की आकृतियां बनायी जाती है |
इसमें सबसे ज्यादा प्रचलित एक षटकोण की आकृति जिसे दो त्रिकोणों में विभक्त कर के बनाया जाता है |
ऐसे बोला जाता है की यह देवी लक्ष्मी का प्रतिरूप है ,इसमें मुख्य रूप से बनने वाले विषय सामाजिक रूप से मनाये जाने वाले रीति-रिवाज़ है|
तीज त्यौहार को चित्रित करना है . मांडना दिवाली के समय या फसलो की कटायी के समय बनायीं जाती है |
चोक पुरना :-
यह उत्तर भारत में घरो में बनाया जाता है |
चोक पुरन का मतलब होगा की घर को वो खाली हिस्सा जिसमे पूरे घर को जोड़ा गया हो |
और पुरन का मतलब हुआ उसे सजाना ,अर्थात घर में मांगलिक कार्य में घर के मध्य भाग को सजाना |
शिशु जन्म से लेकर , विवाह तक हर तीज त्यौहार में चौक पुरा जाता है, और उसे बनाते समय महिलायें गीत गाती है |
रंगोली कैसे बनायी जाती है ( How to Draw Rangoli)
रंगोली मुख्य रूप से दो प्रकार से बनायी जाती है
- मुक्त हस्त ( फ्री हैण्ड )
- बिंदी वाली
- मुक्त हस्त– इसमें किसी भी आकृति को बनाया जा सकता है, चाहे वो फूल पट्टी या कोई निजी आकृति |आज कल बड़े ही सुंदर सुंदर चित्रों की रंगोलिया बनायीं जाती है |
- बिंदी वाली- इसमें कुछ सीमित बिन्दुओ को अंकित किया जाता है और फिर उन पर आकृति बनायीं जाती है| कोलम भी उसका ही एक प्रकार है |
- स्टीकर रंगोली – बाजार में आजकल बने बनाये रंगोली स्टीकर भी मिलते हैं जिसे हम सीधे जमीन पर चिपका सकते हैं |
- इको-फ्रेंडली रंगोली- आज कल इको फ्रेंडली रंगोली भी बनाने का चलन है , जिसमे हम फूलो का प्रयोग करते है और अगले दिन इस फूलो को खाद बनाने डाल देते है जिससे नए फूल उग सके |
रंगोली कैसी भी हो ,वह घर की सुंदरता को और बड़ा देती है, इसीलिए ये हमारी संस्कृति का इतना अभिन्न भाग है |
रंगोली के वैज्ञानिक महत्व:-
- रंगोली बनाने के पहले जमीन को गाय के गोबर से लिपा जाता है , जिससे मच्छर ,कीड़े मकोड़े घर में नहीं आते |
- रंगोली को बनाने के लिए हम अपने उंगलीयों का प्रयोग करते है ,जिससे हमारे शरीर के एक्यू प्रेशर बिंदु एक्टिव हो जाते है |
- रंगों के प्रभाव हमारे जीवन को प्रभावित करते है और हमे उर्जावान बनाते हैं |
- इको फ्रेंडली रंगोली जो कि फूलों से बनती है ,इन फूलों को हम खाद बनाने में इस्तेमाल कर सकते हैं |
- दैनिक जीवन में प्रातःकाल में जब रंगोली बनाते हैं तो यह एक प्रकार का सूक्ष्म व्यायाम भी हो जाता है |
उम्मीद करते हैं कि दोस्तों आपको आज की ये जानकारी कि रंगोली कैसे बनाते है पसंद आई होगी , इस त्यौहार पर अलग अलग प्रकार की रंगोली भी बनाये और अपने घर की शोभा बढ़ाये |